पटना के कुम्हरार में चुनाव की सरगर्मी है। यहाँ, झुग्गी में चाय बेचने वाली हेमवती देवी वृद्धा पेंशन और मुफ्त अनाज से संतुष्ट हैं, जबकि विश्वनाथ पासवान शराबबंदी से नाराज़ हैं और लालू यादव को याद करते हैं। केसी सिन्हा, जो कभी प्रशांत किशोर के शिक्षक थे, अब जन सुराज पार्टी से भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
बीजेपी ने अरुण कुमार सिन्हा की जगह संजय गुप्ता को टिकट दिया है। जानकार मानते हैं कि कायस्थ वोट के बावजूद बीजेपी को हराना मुश्किल है। केसी सिन्हा का कहना है कि वे स्थानीय होने के कारण चुनाव लड़ रहे हैं।
पटना यूनिवर्सिटी के छात्र अभिषेक, केसी सिन्हा के वीसी के तौर पर कार्यकाल से निराश हैं। केसी सिन्हा के बेटे अनुराग बिहार के लिए एक सपना देख रहे हैं और बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं।
Highlights
ज़रूर, यहाँ लेख के मुख्य अंश हिंदी में हैं:
*   पटना के कुम्हरार क्षेत्र में लोग बुनियादी सुविधाओं और प्रतिनिधित्व से असंतुष्ट हैं।
*   बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में केसी सिन्हा जन सुराज पार्टी से उम्मीदवार हैं।
*   विश्लेषकों का मानना है कि जातिगत समीकरण और कम मतदान प्रतिशत बीजेपी के लिए फायदेमंद हैं।
*   केसी सिन्हा, पूर्व वीसी, बीजेपी के दबदबे को चुनौती दे रहे हैं।
ज़रूर, यहाँ लेख का एक भावनात्मक और जानकारीपूर्ण पुन: लेखन है जिसमें कॉल टू एक्शन और सांख्यिकीय गहराई भी है:
बिहार चुनाव: क्या बदल पाएगा कुम्हरार का इतिहास?
एक उम्मीद, एक सवाल और बहुत सारे सपने…
पटना की राजेंद्र नगर की तंग गलियों में, मोइनुल हक़ स्टेडियम की दीवार से सटी झुग्गियों में एक कहानी जी जाती है। हेमवती देवी, एक विधवा, कोयले के चूल्हे पर चाय बनाती हैं। हर झोंक में, उनकी आँखों में उम्मीद और संघर्ष का अक्स दिखता है।
- गरीबी की मार: हेमवती देवी अकेली नहीं हैं। बिहार में आज भी गरीबी एक कड़वी सच्चाई है। लगभग 33% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है।
 - सरकारी सहारा: हेमवती जी को हर महीने 1100 रुपये वृद्धा पेंशन और मुफ़्त चावल-गेहूँ मिलता है, जिससे उनका जीवन कुछ आसान हो जाता है।
 - राजनीति से दूरी: हेमवती देवी, जनसुराज और प्रशांत किशोर के बारे में कुछ नहीं जानतीं, लेकिन नीतीश कुमार से संतुष्ट हैं।
 
“सरकार से हर महीने चावल और गेहूँ भी मुफ़्त में मिलता है। इसलिए खाने-पीने की दिक़्क़त नहीं है।” – हेमवती देवी
नीतीश कुमार से नाराज़गी
विश्वनाथ पासवान, जो रिक्शेवालों के लिए खाना बेचते हैं, नीतीश कुमार से नाराज़ हैं। शराबबंदी के कारण उनका खर्चा बढ़ गया है।
- शराबबंदी का असर: बिहार में शराबबंदी एक विवादास्पद मुद्दा है। कई लोग इससे खुश नहीं हैं।
 - लालू यादव की याद: विश्वनाथ पासवान को लालू यादव का दौर याद आता है, जब नेता गरीबों की खोज-खबर लेते थे।
 - विधायक से बेखबर: उन्हें पिछले 20 सालों से अपने विधायक का चेहरा तक नहीं दिखा है।
 
“हमने तो पिछले 20 सालों से अपने विधायक का भी चेहरा नहीं देखा।” – विश्वनाथ पासवान
कुम्हरार का राजनीतिक गणित
कुम्हरार, जो पहले पटना सेंट्रल के नाम से जाना जाता था, बीजेपी का गढ़ माना जाता है। गणित के चर्चित प्रोफ़ेसर केसी सिन्हा के उम्मीदवार बनने के बाद इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
- बीजेपी का दबदबा: पटना सेंट्रल से सुशील कुमार मोदी तीन बार विधायक बने थे। 2008 में कुम्हरार बनने के बाद भी बीजेपी ही जीतती रही।
 - जातिगत समीकरण: इस सीट पर सवर्ण मतदाता ज़्यादा हैं, जिनमें कायस्थ प्रमुख हैं।
 - केसी सिन्हा की चुनौती: क्या केसी सिन्हा बीजेपी के इस गढ़ को तोड़ पाएंगे?
 
केसी सिन्हा: एक उम्मीद की किरण?
केसी सिन्हा, बिहार की कई पीढ़ियों को गणित पढ़ा चुके हैं। एक शिक्षक के तौर पर उनकी छवि बहुत अच्छी है।
- शिक्षक से नेता: क्या केसी सिन्हा अपनी लोकप्रियता को वोटों में बदल पाएंगे?
 - जाति का फैक्टर: प्रशांत किशोर भले ही जाति की राजनीति से इनकार करें, लेकिन केसी सिन्हा को कायस्थ होने का फ़ायदा मिल सकता है।
 - युवाओं की राय: पटना यूनिवर्सिटी के छात्र अभिषेक कुमार केसी सिन्हा के वीसी के तौर पर किए गए कामों से संतुष्ट नहीं हैं।
 
“मैं ऐसा नहीं मानता हूँ। मैं इसी विधानसभा क्षेत्र का वोटर हूँ। यहीं मेरा जीवन बीता है।” – केसी सिन्हा
क्या बदल पाएगा कुम्हरार?
कुम्हरार में 6 नवंबर को मतदान होगा। केसी सिन्हा बीजेपी के किले में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह आसान नहीं है।
- कम मतदान: इस सीट पर 35% से ज़्यादा मतदान कभी-कभार ही हुआ है।
 - बिहार का सपना: केसी सिन्हा के बेटे अनुराग सिन्हा कहते हैं कि उनका परिवार बिहार के लिए एक सपना देखता है।
 - क्या बिहार बदलेगा?: क्या आप बिहार में बदलाव देखना चाहते हैं?
 
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FAQ
ज़रूर, यहां दिए गए लेख के आधार पर 8 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) हैं:
1. कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
- यह सीट पहले पटना सेंट्रल के नाम से जानी जाती थी, जिसका नाम 2008 में बदलकर कुम्हरार कर दिया गया।
 - यह बीजेपी का गढ़ माना जाता है।
 - यहाँ सवर्ण मतदाताओं की संख्या अधिक है, जिनमें कायस्थ प्रमुख हैं।
 
2. इस बार कुम्हरार से कौन-कौन प्रमुख उम्मीदवार हैं?
- संजय गुप्ता (बीजेपी)
 - केसी सिन्हा (जन सुराज पार्टी)
 - कांग्रेस उम्मीदवार (महागठबंधन)
 
3. केसी सिन्हा की उम्मीदवारी को लेकर क्या तर्क दिए जा रहे हैं?
- उन्हें एक प्रतिष्ठित शिक्षक के रूप में जाना जाता है।
 - कुछ का मानना है कि उन्हें कायस्थ होने के कारण टिकट मिला है, लेकिन वे इससे इनकार करते हैं।
 - वे इस क्षेत्र के वोटर हैं और यहीं उनका जीवन बीता है।
 
4. विश्वनाथ पासवान नीतीश कुमार से क्यों ख़फ़ा हैं?
- क्योंकि शराबबंदी के बाद शराब अधिक महंगी हो गई है।
 - उन्हें लालू यादव के मुख्यमंत्री रहते गरीबों की सुध लेने की बात याद है।
 
5. बीजेपी ने अरुण कुमार सिन्हा की जगह संजय गुप्ता को उम्मीदवार क्यों बनाया?
- लेख में सीधे तौर पर इसका कारण नहीं बताया गया है, लेकिन यह उल्लेख किया गया है कि इस सीट पर बीजेपी जिसे भी खड़ा करती है, उसके जीतने की संभावना होती है।
 
6. केसी सिन्हा के वीसी के रूप में प्रदर्शन पर क्या सवाल उठाए जा रहे हैं?
- उन पर विश्वविद्यालयों में सेशन नियमित नहीं करा पाने और सिस्टम सुधारने के लिए पर्याप्त काम नहीं करने के आरोप लगाए गए हैं।
 
7. कुम्हरार में बीजेपी की रणनीति क्या है?
- बीजेपी सवर्णों और नीतीश कुमार के कारण कुर्मी मतदाताओं के समर्थन पर निर्भर है।
 
8. जन सुराज पार्टी की भूमिका क्या है?
- कुछ लोगों का मानना है कि जन सुराज पार्टी की भूमिका 2020 में चिराग पासवान की एलजेपी की तरह है, लेकिन प्रशांत किशोर के प्रयासों से यह बिहार में एक विकल्प बन सकती है।
 
