फायरिंग की आवाजें गूंजीं, और यात्रियों में दहशत फैल गई। BLA ने एक बयान जारी किया कि अगर पाकिस्तानी फौज ने कोई ऑपरेशन किया, तो वो सभी बंधकों को मार देंगे। लेकिन अभी तक पाकिस्तान सरकार की तरफ से कोई ऑफिशियल जवाब नहीं आया है।
ताजा खबरों के मुताबिक, BLA के लड़ाकों ने 35 यात्रियों को अपने साथ ले लिया, जबकि पुलिस का कहना है कि 350 लोग सुरक्षित बचा लिए गए। BLA ने ये भी दावा किया कि उन्होंने 20 सैनिकों को मार गिराया, पर इसकी पुष्टि नहीं हुई। ये सारी घटना अभी भी रहस्य से भरी है, और हर पल नई अपडेट्स आ रही हैं।
हमारे लिए ये समझना जरूरी है कि बलोचिस्तान में अशांति का असर पूरे इलाके पर पड़ता है। वहाँ की हर घटना भारत के लिए भी एक संकेत हो सकती है, खासकर जब बात चीन और ग्वादर पोर्ट की हो। चलिए, अब इसकी जड़ों में जाते हैं – आखिर बलोचिस्तान में ऐसा क्यों हो रहा है?
बलोचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो दक्षिण-पश्चिम में बसा है। इसकी सीमाएँ ईरान और अफगानिस्तान से लगती हैं, और दक्षिण में अरब सागर है। ये इलाका 44% पाकिस्तान की जमीन पर फैला है, लेकिन यहाँ की आबादी सिर्फ 5% है – यानी करीब 1.5 करोड़ लोग। समझ लीजिए, ये एक ऐसा इलाका है जो बड़ा तो है, लेकिन खाली-खाली सा लगता है।
1947 में जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान बंटे, तो बलोचिस्तान की चार रियासतें थीं – कलात, खरान, लास बेला, और मकरान। इनमें सबसे ताकतवर कलात थी। कलात के राजा मीर अहमद खान चाहते थे कि उनका इलाका आजाद रहे, न भारत का हिस्सा बने, न पाकिस्तान का। जिन्ना ने पहले उनकी आजादी का समर्थन किया, लेकिन बंटवारे के बाद खेल बदल गया।
बंटवारे के अगले ही दिन कलात ने आजादी का ऐलान किया, लेकिन ब्रिटेन ने कहा कि वो आजाद मुल्क चलाने के लायक नहीं हैं। फिर 27 मार्च 1948 को ऑल इंडिया रेडियो पर खबर चली कि कलात भारत में मिलना चाहता है। ये खबर झूठी थी, लेकिन जिन्ना ने मौका देखते ही फौज भेज दी। 28 मार्च को मीर अहमद खान को गिरफ्तार कर लिया गया, और जबरन कागजों पर दस्तखत करवाकर बलोचिस्तान को पाकिस्तान में मिला लिया गया।
बलोचों ने इस जबरदस्ती को कभी स्वीकार नहीं किया। 1958, 1962, और 1973 में विद्रोह हुए, लेकिन हर बार पाकिस्तानी फौज ने उन्हें कुचल दिया। फिर 2005 में नवाब अकबर खान बुगती ने हथियार उठाए। बुगती कभी पाकिस्तान के डिफेंस मिनिस्टर और बलोचिस्तान के मुख्यमंत्री रहे थे, लेकिन 2006 में उनकी हत्या कर दी गई। शक की सुई ISI और पाकिस्तानी सेना पर गई, और तब से विद्रोह की आग और भड़क उठी।
दोस्तों, हमारे अपने देश से जब अंग्रेज गए, तो कई रियासतें आजाद रहना चाहती थीं, जैसे हैदराबाद और जूनागढ़। लेकिन भारत ने उन्हें अपने साथ जोड़ा। बलोचिस्तान में भी वही हुआ, बस फर्क ये था कि वहाँ जबरदस्ती ज्यादा थी, और आज तक वो जख्म भरे नहीं हैं।
बलोचिस्तान में तांबा, सोना, कोयला, और यूरेनियम जैसे खनिजों का भंडार है – पाकिस्तान के 20% प्राकृतिक संसाधन यहीं से आते हैं। ग्वादर पोर्ट और चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) ने इसे और अहम बना दिया। लेकिन बलोचों का कहना है कि उनकी जमीन लूटी जा रही है, और उन्हें कुछ नहीं मिल रहा।
BLA की शुरुआत को लेकर मतभेद हैं। कुछ कहते हैं कि ये 2000 में बना, तो कुछ का दावा है कि 1979 में सोवियत संघ ने इसे बनवाया। जब सोवियत ने अफगानिस्तान पर हमला किया, तो पाकिस्तान ने मुजाहिदीनों का साथ दिया। जवाब में सोवियत ने अपने एजेंट्स मीशा और शाशा को बलोचिस्तान भेजा, जहाँ उन्होंने बलोच स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन (BSO) को ट्रेनिंग दी, और BLA का जन्म हुआ।
BLA के पास करीब 6000 लड़ाके हैं, और ये सैकड़ों हमले कर चुके हैं। 2006 में इन्होंने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर हमला किया, वो बच गए। उसी साल पाकिस्तान ने BLA को बैन कर दिया। 2009 में पंजाब में 500 लोगों की हत्या का इल्जाम लगा। 2021 में ग्वादर में जिन्ना की मूर्ति उड़ा दी। और अब ये ट्रेन हाईजैकिंग!
BLA कई बार चीनी नागरिकों और CPEC प्रोजेक्ट्स पर हमले कर चुका है। इनका कहना है कि चीन उनकी जमीन का शोषण कर रहा है। ये वही चीन है जो भारत के खिलाफ भी अपनी चालें चलता रहता है। तो क्या BLA की लड़ाई में हमारा भी कोई हित छुपा है?
दोस्तों, जेसे हमारे नॉर्थ-ईस्ट में भी कई ग्रुप्स ने आजादी की मांग की, लेकिन भारत ने उन्हें बातचीत से जोड़ा। बलोचिस्तान में ऐसा नहीं हुआ – वहाँ बंदूक ही जवाब बनी।
अमेरिका, ब्रिटेन, और चीन BLA को आतंकी मानते हैं, लेकिन बलोच इसे आजादी की लड़ाई कहते हैं। आप क्या सोचते हैं? कमेंट में जरूर बताइए!
2024 में पाकिस्तान में 521 आतंकी हमले हुए, जिसमें 2000 लोग मरे। 2025 की शुरुआत में ही 100 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। ज्यादातर हमले खैबर पख्तूनवा और बलोचिस्तान में हुए। ज़फर एक्सप्रेस को पहले अगस्त 2024 में रोका गया था, जब BLA ने एक ब्रिज उड़ा दिया। अब फिर हाईजैकिंग!
पाकिस्तान ने BLA को खत्म करने के लिए कई ऑपरेशन चलाए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। 7 मार्च को काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट ने चेतावनी दी थी, पर कोई एक्शन नहीं हुआ।
बलोचिस्तान की अशांति भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि ये पाकिस्तान और चीन को परेशान करती है। लेकिन अगर ये इलाका अस्थिर रहा, तो आतंकवाद का खतरा भी बढ़ सकता है।
क्या BLA अपनी मांगें मनवा पाएगा? या पाकिस्तान इसे कुचल देगा? या फिर कोई तीसरा देश इस आग में घी डालेगा? ये सवाल अभी खुले हैं।
दोस्तों, ये मुझे उस पड़ोसी की याद दिलाता है, जिसके घर में रोज लड़ाई होती थी। हम सोचते थे कि हमें क्या, लेकिन एक दिन उनकी छत से पत्थर हमारे घर में गिरा। बलोचिस्तान भी ऐसा ही है – दूर है, पर असर पास तक आ सकता है।
दोस्तों, आज हमने देखा कि बलोचिस्तान में ज़फर एक्सप्रेस की हाईजैकिंग कैसे हुई, BLA कौन है, और बलोचिस्तान का इतिहास क्या है। हमने समझा कि ये लड़ाई सिर्फ आजादी की नहीं, बल्कि संसाधनों और शक्ति की भी है।
ये कहानी हमें सिखाती है कि अपने हक के लिए लड़ना कितना मुश्किल हो सकता है। बलोचिस्तान की आग अभी बुझी नहीं है, और इसका असर हम सब पर पड़ सकता है।
अगर आपको ये वीडियो पसंद आया, तो लाइक करें, सब्सक्राइब करें, और कमेंट में बताएं कि आप BLA को आतंकी मानते हैं या आजादी के लड़ाके? आप बलोचिस्तान के बारे में और क्या जानना चाहते हैं? हमें जरूर बताइए। मिलते हैं अगली वीडियो में, तब तक अपना और अपनों का ख्याल रखिए!