दोस्तों, हाल ही में बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के प्रमुख, नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस, चीन के दौरे पर थे। अब आप सोचेंगे कि इसमें क्या बड़ी बात है? दो देशों के नेता मिलते रहते हैं। लेकिन दोस्तों, इस मुलाक़ात के दौरान और उसके बाद जो बातें सामने आईं, उन्होंने भारत के लिए खतरे की घंटी बजा दी है।
हम बात कर रहे हैं भारत के उस बेहद संवेदनशील और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इलाके की, जिसे हम ‘चिकन नेक’ या ‘सिलीगुड़ी कॉरिडोर’ के नाम से जानते हैं। ये भारत की मुख्य भूमि को उसके उत्तर-पूर्वी राज्यों, जिन्हें हम ‘सेवन सिस्टर्स’ (और सिक्किम मिलाकर आठ राज्य) कहते हैं, से जोड़ने वाला इकलौता ज़मीनी रास्ता है। सोचिए, महज़ 22 किलोमीटर चौड़ा ये गलियारा भारत के लिए कितना अहम है!
तो फिर मुहम्मद यूनुस की चीन यात्रा और इस ‘चिकन नेक’ का क्या कनेक्शन है? कनेक्शन ये है, दोस्तों, कि रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस यात्रा के दौरान मुहम्मद यूनुस ने कुछ ऐसे संकेत दिए, कुछ ऐसी बातें कहीं, जिसने ये सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बांग्लादेश अब चीन के साथ मिलकर भारत के इस ‘चिकन नेक’ को निशाना बनाने की किसी साज़िश का हिस्सा बन सकता है? क्या बांग्लादेश, चीन को भारत के पूर्वोत्तर तक पहुँचने में मदद कर सकता है, वो भी भारत को दरकिनार करके?
ये सवाल इसलिए भी गंभीर हो जाता है क्योंकि ये सिलीगुड़ी कॉरिडोर नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे देशों से घिरा हुआ है, और चीन की सीमा भी यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है। ज़रा सोचिए, अगर इस पतली सी पट्टी पर ज़रा भी आंच आई, अगर दुश्मन ने इस पर कब्ज़ा करने की कोशिश की, तो भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों का संपर्क बाकी देश से कट सकता है! ये भारत की अखंडता और सुरक्षा के लिए कितना बड़ा खतरा हो सकता है, इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है।
आज के इस वीडियो में, हम इसी पूरे मामले की गहराई से पड़ताल करेंगे। हम जानेंगे कि ये सिलीगुड़ी कॉरिडोर आखिर इतना महत्वपूर्ण क्यों है? मुहम्मद यूनुस ने चीन में ऐसा क्या कहा जिससे भारत की चिंता बढ़ गई? क्या वाकई बांग्लादेश, चीन के झांसे में आ रहा है? और सबसे ज़रूरी बात, भारत इस ‘चिकन नेक’ की सुरक्षा के लिए कितना तैयार है? हमारी सेना की इस इलाके में क्या तैयारी है? कौन-कौन से घातक हथियार यहाँ तैनात हैं? क्या भारत किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है?
हम इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे, तथ्यों और विश्लेषण के साथ। लेकिन उससे पहले, अगर आप भी मानते हैं कि भारत की सुरक्षा सर्वोपरि है और हर भारतीय को इस मुद्दे पर जागरूक होना चाहिए, तो इस वीडियो को लाइक ज़रूर करें और कमेंट बॉक्स में ज़ोर से लिखें – जय हिन्द! क्योंकि जय हिन्द कहना हम सबके लिए गर्व की बात है! चलिए, शुरू करते हैं ।
दोस्तों, किसी भी देश की सुरक्षा उसकी भूगोल पर बहुत हद तक निर्भर करती है। और भारत के भूगोल में सिलीगुड़ी कॉरिडोर एक ऐसी हकीकत है जो जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी ही संवेदनशील भी। चलिए, सबसे पहले समझते हैं कि आखिर ये है क्या और क्यों इसे लेकर इतनी चर्चा होती है।
ये कॉरिडोर पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में स्थित है। इसकी चौड़ाई कुछ जगहों पर सिर्फ 20-22 किलोमीटर तक सिमट जाती है। सोचिए, दिल्ली से गुरुग्राम जितनी दूरी! इसकी लंबाई करीब 60 किलोमीटर है।
इसके उत्तर में नेपाल और भूटान हैं। दक्षिण में बांग्लादेश है। और थोड़ी ही दूरी पर, भूटान और अरुणाचल के पार, तिब्बत के रास्ते चीन की मौजूदगी है ये भौगोलिक स्थिति इसे बेहद जटिल और रणनीतिक रूप से विस्फोटक बनाती है।
भारत के नक्शे को देखें तो ये हिस्सा वाकई एक मुर्गी की गर्दन जैसा लगता है, जो मुख्य धड़ (बाकी भारत) को सिर (पूर्वोत्तर भारत) से जोड़ता है। अगर ये गर्दन कट जाए, तो…? इसीलिए ये नाम इसकी संवेदनशीलता को दर्शाता है।
ये भारत के आठ उत्तर-पूर्वी राज्यों (सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय) को शेष भारत से जोड़ने वाला एकमात्र ज़मीनी गलियारा है।
चीन और म्यांमार के साथ हमारी लंबी सीमाओं की सुरक्षा के लिए सेना की आवाजाही, रसद आपूर्ति, और तैनाती के लिए ये रास्ता जीवन रेखा है। अगर ये बाधित होता है, तो सीमा पर हमारी क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है।
पूर्वोत्तर के व्यापार, पर्यटन और आर्थिक विकास के लिए ये कॉरिडोर अनिवार्य है। यहाँ से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-27, NH-10) और रेलवे लाइनें इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। (
ये सिर्फ एक ज़मीनी टुकड़ा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, जो करोड़ों भारतीयों को एक-दूसरे से जोड़ता है। इसका सुरक्षित रहना भारत की अखंडता के लिए परम आवश्यक है।
भारत के विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के निर्माण के कारण ये भौगोलिक स्थिति उत्पन्न हुई, जिसने भारत को रणनीतिक रूप से कमजोर स्थिति में डाल दिया।
1962 के चीन-भारत युद्ध ने इस कॉरिडोर की खतरे को उजागर कर दिया था। चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश में काफी अंदर तक आ गई थी, और ये खतरा महसूस किया गया था कि वे इस कॉरिडोर को काट सकते हैं।
चीन की चुम्बी घाटी (Chumbi Valley) इस कॉरिडोर के बेहद करीब है, खासकर डोकलाम ट्राई-जंक्शन के पास। चीन द्वारा यहाँ सड़क या सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण सीधे तौर पर सिलीगुड़ी कॉरिडोर के लिए खतरा पैदा करता है। 2017 का डोकलाम विवाद इसी चिंता का नतीजा था।
इस क्षेत्र में उग्रवाद (हालांकि अब कम है), अवैध अप्रवासन, और तस्करी जैसी समस्याएं भी रही हैं, जो इसकी सुरक्षा को और जटिल बनाती हैं। पड़ोसी देशों की राजनीतिक अस्थिरता का असर भी पड़ सकता है।
तो दोस्तों, अब आप समझ गए होंगे कि ये सिलीगुड़ी कॉरिडोर सिर्फ एक ज़मीनी रास्ता नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और एकता की जीवन रेखा है। और इसी जीवन रेखा पर अब बांग्लादेश और चीन की मिलीभगत के शक की सुई घूम रही है।
दोस्तों, सिलीगुड़ी कॉरिडोर की अहमियत समझने के बाद, अब आते हैं उस ताज़ा घटनाक्रम पर जिसने नई दिल्ली में चिंता की लकीरें खींच दी हैं। जैसा हमने शुरू में बताया, बांग्लादेश के अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस हाल ही में चीन गए थे।
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के हटने के बाद बनी अंतरिम सरकार के प्रमुख के तौर पर यूनुस का ये दौरा अहम था। चीन, बांग्लादेश में बड़ा निवेशक है और अपनी पैठ बढ़ाना चाहता है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, यूनुस ने चीन के सामने भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के ‘लैंडलॉक्ड’ ( चारों ओर से ज़मीन से घिरा) होने का ज़िक्र किया। उन्होंने कथित तौर पर कहा कि इन राज्यों के पास समुद्र तक पहुँचने का कोई सीधा रास्ता नहीं है, और बांग्लादेश इस पूरे क्षेत्र के लिए समुद्र तक पहुँच का एकमात्र ज़रिया बन सकता है।
क्या ये चीन से आर्थिक मदद और निवेश पाने की कोशिश है? चीन बांग्लादेश में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में भारी निवेश कर रहा है । क्या यूनुस सरकार चीन को ये संकेत दे रही है कि वो भारत की चिंताओं की परवाह किए बिना चीन के साथ जाने को तैयार है? (
क्या ये भारत पर किसी तरह का दबाव बनाने की रणनीति है? हालांकि ये मुश्किल लगता है, क्योंकि बांग्लादेश अपनी सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए भारत पर भी काफी निर्भर है।
क्या इसका संबंध बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति से है? क्या अंतरिम सरकार अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए चीन कार्ड खेल रही है?
ये बयान इसलिए भी चौंकाता है क्योंकि बांग्लादेश के जन्म में भारत की निर्णायक भूमिका रही है। 1971 में भारतीय सेना ने ही पाकिस्तानी सेना को हराकर बांग्लादेश को आज़ादी दिलाई थी। क्या बांग्लादेश इतनी जल्दी इतिहास भूल सकता है?
चीन की नज़र हमेशा से सिलीगुड़ी कॉरिडोर और भारत के पूर्वोत्तर पर रही है। वो इस क्षेत्र में भारत के प्रभाव को कम करना चाहता है।
चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति (हिंद महासागर में बंदरगाहों का नेटवर्क बनाना) और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत वो भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। बांग्लादेश में उसकी बढ़ती मौजूदगी इसी रणनीति का हिस्सा है।
डोकलाम विवाद (2017) ने दिखाया कि चीन इस इलाके में यथास्थिति बदलने से हिचकिचाएगा नहीं। चीन लगातार सीमा पर सैन्य जमावड़ा और इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है।
चीन, बांग्लादेश को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश कर सकता है। वो बांग्लादेश को आर्थिक लालच देकर अपने पाले में करना चाहेगा ताकि भारत के ‘चिकन नेक’ पर दबाव बनाया जा सके।
दोस्तों, बांग्लादेश का बयान और चीन की चालें मिलकर सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर खतरे के बादल ज़रूर गहरा करते हैं। लेकिन क्या भारत चुप बैठा है? बिलकुल नहीं! अब देखते हैं भारत ने इस चुनौती से निपटने के लिए क्या तैयारी कर रखी है, कैसे भारत ने इस इलाके को एक अभेद्य किले में बदल दिया है।
दोस्तों, जब बात देश की सुरक्षा की आती है, तो भारत कोई कोताही नहीं बरतता। और सिलीगुड़ी कॉरिडोर की अहमियत को समझते हुए, भारतीय सेना और सरकार ने यहाँ सुरक्षा का ऐसा फौलादी चक्रव्यूह तैयार किया है, जिसे भेदना किसी भी दुश्मन के लिए आसान नहीं होगा।
इस पूरे संवेदनशील क्षेत्र की सुरक्षा की मुख्य जिम्मेदारी भारतीय सेना की तैंतीस कोर पर है, जिसे ‘त्रिशक्ति कोर’ के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्यालय पश्चिम बंगाल के सुकना में है।
ये कोर विशेष रूप से ऊंचाई वाले और पहाड़ी इलाकों में युद्ध लड़ने के लिए प्रशिक्षित है। इनके जवान कठिनतम परिस्थितियों में ऑपरेशन करने में माहिर हैं।
सेना के साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल (BSF) बांग्लादेश और नेपाल सीमा पर, सशस्त्र सीमा बल (SSB) नेपाल और भूटान सीमा पर, असम राइफल्स (पूर्वोत्तर में सक्रिय), और पश्चिम बंगाल पुलिस भी सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये एक मल्टी-एजेंसी सुरक्षा ग्रिड है।
पास के एयरबेस जैसे हाशिमारा, बागडोगरा आदि पर वायु सेना के सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान तैनात हैं।
गेम चेंजर राफेल विमान अपनी घातक मिसाइलों (Meteor, SCALP) के साथ यहाँ तैनात हैं, जो किसी भी हवाई खतरे या ज़मीनी टारगेट को पलक झपकते नष्ट कर सकते हैं।
Sukhoi-30 MKI भारत का मुख्य लड़ाकू विमान, लंबी दूरी और भारी हथियार ले जाने में सक्षम।
MiG-29, Mirage 2000, Tejas अन्य महत्वपूर्ण लड़ाकू विमान भी ज़रूरत पड़ने पर तुरंत पहुँच सकते हैं। तेजस की तैनाती भी इस क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त देती है।
Super Hercules, C-17 Globemaster जैसे परिवहन विमान और Apache, Chinook, रुद्र जैसे लड़ाकू हेलीकॉप्टर सेना को तेज़ी से पहुँचाने और मदद करने के लिए तैयार हैं।
रूस से मिला दुनिया का सबसे उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम S-400 इस क्षेत्र में तैनात किया गया है, जो 400 किलोमीटर दूर तक किसी भी हवाई खतरे का पता लगाकर उसे नष्ट कर सकता है।
स्वदेशी आकाश और इज़राइल के साथ विकसित MRSAM (मीडियम रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल) सिस्टम भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
मुख्य युद्धक टैंकों की रेजीमेंट्स यहाँ तैनात हैं, जो दुश्मन के किसी भी ज़मीनी हमले का जवाब देने में सक्षम हैं।
BMP Infantry Combat Vehicles: सैनिकों को सुरक्षित ले जाने और फायर सपोर्ट देने के लिए।
बोफोर्स, धनुष, और अन्य तोपें दुश्मन के ठिकानों पर कहर बरपा सकती हैं। Pinaka मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
दुनिया की सबसे तेज़ सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस की तैनाती इस क्षेत्र में भारत को अचूक मारक क्षमता प्रदान करती है। इसे ज़मीन, हवा, और समुद्र कहीं से भी दागा जा सकता है और ये किसी भी मौसम में सटीक निशाना लगा सकती है। इसकी तैनाती चीन के लिए बड़ा सिरदर्द है।
सीमा सड़क संगठन (BRO) लगातार सीमा तक जाने वाली सड़कों, सुरंगों और पुलों का निर्माण और उन्नयन कर रहा है ताकि सेना की आवाजाही तेज़ी से हो सके।
पूर्वोत्तर में कई ALG को अपग्रेड किया गया है जहाँ लड़ाकू और परिवहन विमान उतर सकते हैं, जिससे प्रतिक्रिया समय कम हो गया है।
इस क्षेत्र में रेलवे नेटवर्क का विस्तार भी किया जा रहा है।
त्रिशक्ति कोर और वायु सेना नियमित रूप से इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास करती हैं ताकि विभिन्न परिदृश्यों में अपनी तैयारी को परखा जा सके और तालमेल बेहतर बनाया जा सके।
सैटेलाइट, ड्रोन, रडार और अन्य खुफिया माध्यमों से सीमा पार की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी जाती है।
तो जैसा कि आपने देखा, भारत ने अपने ‘चिकन नेक’ को सुरक्षित रखने के लिए ज़मीन से लेकर आसमान तक सुरक्षा का ऐसा जाल बिछाया है, जिसे भेद पाना नामुमकिन तो नहीं, लेकिन बेहद मुश्किल ज़रूर है। हमारी सेनाएं पूरी तरह मुस्तैद और किसी भी चुनौती के लिए तैयार हैं।
लेकिन ये भी उतना ही सच है कि भारत अपनी सुरक्षा को लेकर पूरी तरह सजग और सतर्क है। हमारी बहादुर सेना, आधुनिक हथियार प्रणाली, और मजबूत इरादे इस बात की गारंटी हैं कि भारत की एक इंच ज़मीन पर भी कोई आंच नहीं आने दी जाएगी। ‘चिकन नेक’ भारत की जीवन रेखा है, और इसकी सुरक्षा के लिए भारत किसी भी हद तक जाने को तैयार है। पड़ोसी देशों से हम अच्छे रिश्ते चाहते हैं, लेकिन अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
आपकी इस पूरे मामले पर क्या राय है? क्या आपको लगता है बांग्लादेश चीन के प्रभाव में आ रहा है? भारत को और क्या कदम उठाने चाहिए? अपने विचार नीचे कमेंट बॉक्स में हमारे साथ ज़रूर साझा करें।
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