Narendra Modi Donald Trump no more Friends ? Apple Operation Sindoor

एक ऐसी दोस्ती की, एक ऐसे रिश्ते, जिसने पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। मैं बात कर रहा हूँ भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की। याद हैं वो दिन?

जब एक तरफ ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ की गूँज थी, तो दूसरी तरफ अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ का शोर। ट्रंप मोदी को अपना ‘सच्चा दोस्त’, ‘महान नेता’, ‘सख्त सौदेबाज’ बताते थे, और मोदी जी भी ट्रंप की तारीफ़ में पुल बांधते थे। दोनों के बीच एक कमाल की केमिस्ट्री दिखती थी। दोनों ही अपने देशों को सबसे पहले रखने वाले, ज़बरदस्त राष्ट्रवादी नेता। समानताएं भी खूब थीं – दोनों ही ‘हार्डकोर नेशनलिस्ट’, मजबूत नेतृत्व और अपने देश को सर्वोपरि रखने वाले।

ऐसा लगता था मानो दो दोस्त मिले हों, जिनकी सोच काफी मिलती जुलती है। ये दोस्ती सिर्फ़ नेताओं की नहीं, बल्कि दो बड़े लोकतंत्रों के बीच बढ़ते रिश्तों की निशानी थी। लेकिन दोस्तों, कहानी में एक बड़ा ट्विस्ट आया है। पिछले कुछ समय से कुछ ऐसी घटनाएँ हो रही हैं, कुछ ऐसे बयान आ रहे हैं, जो इस दोस्ती पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। क्या वही समानताएं, वही ‘अपने देश को पहले रखने’ की सोच अब इन दोनों नेताओं और देशों के बीच दूरियां बढ़ा रही है?

क्या नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप, जो कभी दोस्त थे, अब धीरे-धीरे एक दूसरे के लिए चुनौती बन रहे हैं? ये सवाल क्यों उठ रहा है? किन घटनाओं ने इस रिश्ते को बदला है? और इन सबका भारत पर क्या असर पड़ेगा?

क्योंकि जो हो रहा है, वो सिर्फ़ दो नेताओं के बीच का मामला नहीं, बल्कि भारत के बढ़ते कद और दुनिया की बदलती तस्वीर का हिस्सा है।

याद है वो किस्सा जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा, “भारत में मत बनाओ फैक्ट्री”? ये बात कही थी डोनाल्ड ट्रंप ने, एप्पल कंपनी के CEO टिम कुक से। सोचिए, दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी के मालिक से कहा जा रहा है कि भारत जैसी बड़ी मार्किट में प्रोडक्शन मत करो! ये बात चौंकाने वाली थी, खासकर तब जब कुछ ही वक़्त पहले एप्पल के CEO टिम कुक ने कहा था कि अब अमेरिका में बिकने वाले 50% iPhones भारत में बन रहे हैं। भारत के लिए ये गर्व का पल था, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लिए एक बड़ी कामयाबी। लेकिन ट्रंप के लिए शायद ये खतरे की घंटी थी।

दोस्तों इस को देख कर याद आता है वो दोर जब मुहम्मद तुगलक, जो दिल्ली सल्तनत के सुल्तान थे, ने चमड़े के सिक्के चलाये थे और मुहम्मद तुगलक बुरी तरह नाकाम रहा इसको देख कर कुछ ऐसा ही लगता है

क्योंकि ट्रंप का पूरा एजेंडा ‘अमेरिका फर्स्ट’ का है। वो चाहते हैं कि कंपनियाँ अमेरिका में ही निवेश करें, अमेरिका में ही नौकरियाँ पैदा करें। जब वो भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनते देख रहे हैं, जब अमेरिका की बड़ी कंपनियाँ चीन से निकलकर भारत में फैक्ट्री लगा रही हैं, तो ये बात उन्हें खटक रही है। उन्हें डर है कि कहीं भारत, चीन की तरह अमेरिका के लिए एक बड़ा कॉम्पिटिटर न बन जाए। चीन ने भी तो ऐसे ही शुरुआत की थी, पहले अमेरिकी कंपनियों को बुलाया, फिर खुद बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बन गया। अब ट्रंप को लग रहा है कि भारत भी उसी रास्ते पर है।

लेकिन ये सिर्फ़ आर्थिक मामला नहीं है दोस्तों। इसके पीछे एक राजनीतिक और रणनीतिक संदेश भी छुपा है। ट्रंप का ये बयान सिर्फ एप्पल के लिए नहीं था। ये सारी इंटरनेशनल बड़ी कंपनियों के लिए था। संदेश साफ था: “भारत में निवेश करने से पहले अमेरिका को प्राथमिकता दो।” ये एक तरह से भारत को उसकी बढ़ती ताकत दिखाने से रोकने की कोशिश थी। ये उस अमेरिका का अहंकार है जो दुनिया पर अपना दबदबा बनाए रखना चाहता है। जब भारत जैसी उभरती हुई ताकत अपना रास्ता खुद चुनने लगती है, अपनी शर्तों पर आगे बढ़ने लगती है, तो ये बात पुरानी विश्व व्यवस्था के रखवालों को पसंद नहीं आती।

ये सिर्फ़ एक बयान नहीं था, ये भारत के सामने एक नई चुनौती थी। एक ऐसा देश जो कभी सिर्फ़ एक बाज़ार माना जाता था, अब खुद एक मैन्युफैक्चरिंग पावर बन रहा है, अपनी पॉलिसीज़ खुद बना रहा है। और ये बात अमेरिका के लिए एक नई सिचुएशन है जिससे उन्हें निपटना पड़ रहा है। ये दिखाता है कि जब भारत अपनी राह पर चलता है, तो दुनिया के बड़े देशों को भी अपनी रणनीति बदलनी पड़ती है। एप्पल का मामला तो सिर्फ़ एक शुरुआत थी। आगे और भी ऐसी चुनौतियाँ आ सकती हैं।

सोचिए, जो दोस्त कभी आपकी पीठ थपथपा रहा था, अचानक आपको किसी काम से रोकने लगे, तो कैसा लगेगा? ये कुछ वैसा ही है। भारत की आज़ाद विदेश नीति, उसका अपना मेक इन इंडिया का सपना, ये सब अमेरिका को हजम नहीं हो रहा। और इसीलिए, ट्रंप जैसे नेता, जो शायद भारत को अभी भी एक जूनियर पार्टनर समझते हैं, उन्हें दिक्कत हो रही है। उन्हें लग रहा है कि उनका ‘दोस्त’ उनकी बात क्यों नहीं सुन रहा? क्यों अपनी राह पर चला जा रहा है?

ये दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध कितने पेचीदा होते हैं। दोस्ती और दुश्मनी, फ़ायदे और नुकसान, सब कुछ एक साथ चलता है। एप्पल का ये किस्सा सिर्फ़ एक छोटा सा उदाहरण है कि भारत के बढ़ते कदम कैसे पुरानी शक्तियों को बेचैन कर रहे हैं। ये दिखाता है कि भारत को अब सिर्फ़ अपनी जनता के बारे में ही नहीं, बल्कि दुनिया के बड़े खिलाड़ियों की चालों के बारे में भी सोचना पड़ेगा। क्योंकि जब आप बड़े होते हैं, जब आप मज़बूत होते हैं, तो आपकी अपनी पहचान बनती है। और ये पहचान बनाना आसान नहीं होता, खासकर तब जब पुरानी व्यवस्था के लोग इसे रोकना चाहें।

क्या आपने सुना था कि अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान की लड़ाई रुकवाई? हाँ, डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसा दावा किया था। जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था, तब अचानक ट्रंप ने ट्वीट किया और बयान दिया कि उन्होंने दोनों देशों के बीच सीज़फायर करवाया है। उन्होंने बड़े गाजे-बाजे के साथ इसका ऐलान किया था। बार-बार कहा कि मैंने इसे रोका है। वो चाहते थे कि दुनिया उन्हें एक ‘ग्रेट मीडिएटर’, एक ‘पीस मेकर’ के तौर पर देखे। शायद नोबेल पीस प्राइज के लिए भी उनकी नज़र थी।

लेकिन भारत ने उनके दावों को सिरे से खारिज कर दिया। भारत सरकार ने साफ कर दिया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। हमने सिर्फ़ एक ‘पॉज़’ लिया है। ये जवाब ट्रंप और उनकी टीम के लिए एक बड़ा झटका था। उनकी डिप्लोमेसी का एक तरह से ‘जनाज़ा’ निकल गया, वो समझ नहीं पा रहे थे कि इस पर क्या प्रतिक्रिया दें।

ये घटना सिर्फ़ एक डिप्लोमेटिक चूक नहीं थी। ये दिखाती है कि भारत अब अपनी आज़ादी से कोई समझौता नहीं करने वाला। कश्मीर का मुद्दा हो, जिस पर ट्रंप ने पहले मध्यस्थता की पेशकश की थी और भारत ने साफ कह दिया था कि ये हमारा अंदरूनी मामला है, या पाकिस्तान से निपटने का तरीका। भारत अब किसी तीसरे देश को, खासकर अमेरिका को, अपने और अपने पड़ोसी के बीच दखल देने नहीं देगा।

इस घटना से जुड़ा एक और किस्सा है जो अमेरिकी अहंकार को चोट पहुंचाता है – F-16 का मामला। पाकिस्तान के पास जो सबसे एडवांस लड़ाकू विमान है, वो F-16 है, जो अमेरिका ने उसे दिए हैं। अमेरिका इन F-16 को अपनी एयरफ़ोर्स की शान और इंजीनियरिंग का कमाल मानता है। भारत पाकिस्तान के तनाव के बिच जब पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की कोशिश की, तो भारतीय वायुसेना के एक पुराने MiG-21 ने पाकिस्तान के एक F-16 को मार गिराया था

ये अमेरिका के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी थी। उनके सबसे बेहतरीन हथियारों में से एक, भारत के एक पुराने जेट से हार गया! ये सिर्फ़ एक फाइटर जेट की हार नहीं थी, ये अमेरिकी हथियारों की साख पर सवाल था। सोचिए, अमेरिका जो खुद को मिलिट्री सुपरपावर कहता है, उसके सबसे भरोसेमंद हथियार की ये हालत हो जाए। ये बात डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेता को कैसे अच्छी लग सकती है, जो खुद को हर चीज़ में ‘बेस्ट’ मानते हैं?

ये दोनों घटनाएँ – ट्रंप का सीज़फायर का दावा और F-16 का गिरना – दिखाती हैं कि भारत अब सिर्फ़ दूसरों के कहने पर चलने वाला देश नहीं रहा। भारत अपनी मर्ज़ी से फैसले ले रहा है, अपनी संप्रभुता का पूरा सम्मान कर रहा है, और ज़रूरत पड़ने पर दुनिया की सबसे ताकतवर मानी जाने वाली मिलिट्री टेक्नोलॉजी को भी चुनौती दे रहा है। ये बातें सीधे-सीधे अमेरिका के उस नैरेटिव को तोड़ती हैं कि दुनिया में वही सबसे ऊपर है और सब उसकी बात सुनेंगे। ट्रंप को शायद ये उम्मीद नहीं थी कि भारत उनके ‘पीस मेकर’ वाले दावों को ऐसे खारिज कर देगा, या उनके पसंदीदा F-16 की ऐसी दुर्गति होगी।

ये सारे किस्से बताते हैं कि भारत के बढ़ते कद का अमेरिका पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ रहा है। उन्हें लग रहा है कि उनका एक अहम ‘दोस्त’ अब उनकी बात नहीं सुन रहा। वो अब सिर्फ़ अमेरिका के इशारों पर नहीं चलेगा। भारत इंडिपेंडेंट पॉलिसी लेकर चल रहा है। और ये बात अमेरिका को बेचैन कर रही है। ये बेचैनी ही शायद बयानों और हरकतों में दिख रही है जो कभी दोस्ती जैसी लगती थी, अब तकलीफ जैसी लग रही है।

भारत अब वो देश नहीं रहा जो सिर्फ़ दूसरों की सुनेगा। ये एक हकीकत है जिसे दुनिया, और खासकर अमेरिका, अब धीरे-धीरे स्वीकार कर रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है, हम दुनिया के लिए एक बहुत बड़ा बाज़ार हैं, और अब एक बड़े मैन्युफैक्चरिंग हब भी बन रहे हैं। हमारा डिफेंस सेक्टर मज़बूत हो रहा है, हम अपनी तकनीक पर काम कर रहे हैं, और अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमारी बात सुनी जा रही है।

ये सब दिखाता है ‘राइज ऑफ़ इंडिया’ को। भारत अब ग्लोबल सप्लाई चेन का एक ज़रूरी हिस्सा बन रहा है, और कई देशों के लिए चीन का एक मज़बूत विकल्प। ये वो बदलाव है जो अमेरिका जैसी स्थापित ताकतों के लिए नई चुनौती पेश कर रहा है। दशकों से अमेरिका को आदत थी कि दुनिया के देश उसकी बात मानें, उसकी पॉलिसीज़ फॉलो करें। लेकिन जब भारत जैसा देश अपनी इंडिपेंडेंट विदेश नीति लेकर चलता है, अपने हितों को सर्वोपरि रखता है, तो अमेरिका के लिए चीज़ें थोड़ी मुश्किल हो जाती हैं।

डोनाल्ड ट्रंप की दिक्कत शायद यहीं से शुरू होती है। उन्हें लगता है कि भारत को अभी भी अमेरिका का ‘खास दोस्त’ बनकर रहना चाहिए, यानि अमेरिका के एजेंडे को प्राथमिकता देनी चाहिए। लेकिन भारत अब ये नहीं कर रहा। हम अपने फायदे देख रहे हैं, अपने लोगों के लिए नीतियाँ बना रहे हैं। जब अमेरिका ‘अमेरिका फर्स्ट’ सोच सकता है, तो भारत ‘इंडिया फर्स्ट’ क्यों नहीं?

एक बात और है जो शायद ट्रंप को चुभ रही है। वो चाहते हैं कि भारत उनकी तारीफ करे, उन्हें बड़ा माने, जैसे पाकिस्तान करता रहता है। ये अहंकार की बात है। ट्रंप को शायद भारत से वो सम्मान नहीं मिल रहा जिसकी वो उम्मीद करते हैं। भारत एक बराबरी का रिश्ता चाहता है, पार्टनरशिप चाहता है, न कि किसी के अधीन रहना। और ये बराबरी का दर्जा मांगना अमेरिका जैसे देश को रास नहीं आ रहा।

तो ये जो रिश्तों में बदलाव दिख रहा है, ये दरअसल भारत के उदय की कहानी है। भारत अब मज़बूत हो रहा है, आत्मविश्वास से भर रहा है, और अपनी जगह खुद बना रहा है। ये रास्ता आसान नहीं है। जब आप आगे बढ़ते हैं, तो सबसे पहले आपके ‘रिश्तेदारों’को ही बुरा लगता है।उन्हें लगता है कि कल तक जो छोटा था, वो आज बराबरी पर कैसे आ गया?

दोस्तों अगर एप्पल कम्बने पाने 10 % फ़ोन बन्नने के लिए अमेरिका जाते भे है तो उनको ३० बिलीना का खर्चा करना पड़ेगा और उसके बाद भी वहाँ एप्पल मोबाइल बन्नने का खर्चा भारत से ३ गुना जयादा होगा अब आप खुद समज सकते है की क्या ऐसा एप्पल जेसी बड़ी कम्पनी इसी तरह की बड़ी गलती कंरना दो दूर सोचेगी भी नहीं . सभी को पता है ये आदमी कुछ भी बोलता रहता है एप्पल मुरख नाहे है

ये जो ट्रंप की तरफ से जो ‘दिक्कत’ आ रही है, ये असल में हमें जगाने के लिए है। ये बता रही है कि अब वक़्त आ गया है कि भारत दुनिया में अपनी असली ताक़त दिखाए। सिर्फ़ आर्थिक या सैन्य ताक़त नहीं, बल्कि एक ऐसा देश जो अपने मूल्यों, अपनी संप्रभुता और अपने हितों के लिए खड़ा हो सकता है।

तो दोस्तों, नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के रिश्ते में आया ये बदलाव दरअसल भारत के बदलते हुए वैश्विक कद का नतीजा है। भारत अब मज़बूत हो रहा है, और ये बात पुरानी शक्तियों को बेचैन कर रही है।

आपको क्या लगता है, डोनाल्ड ट्रंप और भारत के बीच आई ये दूरी क्यों बढ़ रही है? क्या ये भारत के लिए एक चुनौती है या एक बड़ा अवसर? अपनी राय कमेंट्स में ज़रूर बताएं।

मिलते हैं अगले वीडियो में! जय हिन्द!

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