एक ऐसा मुदा जो सिर्फ सरहद पार का मामला नहीं, बल्कि इंसानियत और बेशर्मी के बीच का फर्क बताता है। आपने अक्सर झंडे देखे होंगे, हमारे देश का तिरंगा… शान से लहराता हुआ। वो झंडा जिस पर चाँद है, वो झंडा जो चाँद पर पहुँच गया। इन दोनों में सिर्फ दूरी का फर्क नहीं है, दोस्तों। एक झंडा वो है जिस पर चाँद है, पाकिस्तान का झंडा… और एक वो है जहाँ चाँद पर भी हमारा झंडा लहराता है! ये फर्क सिर्फ झंडे का नहीं, ये फर्क है देश भक्ति का, सोच का, और इंसानियत का।
आप सोचिए, एक झंडा वो है जहाँ सैनिक और आतंकी… सब उसमें लपेटे जाते हैं। जहाँ चाँद तो है, लेकिन उस चाँद की औकात सिर्फ उन लाशों को ढकने की है जो इंसानियत के दुश्मन हैं। और दूसरा झंडा… वो झंडा जो चाँद पर है… वो झंडा सिर्फ देशभक्तों के लिए है, उन वीरों के लिए जिन्होंने देश के लिए जान दी। ये सिर्फ कपड़ों का टुकड़ा नहीं है, दोस्तों। ये निशान है उस सोच का जो या तो देश बनाती है, या उसे आतंक का अड्डा। और आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे देश की, पाकिस्तान की, जिसने अपने ही झंडे को आतंक का प्रतीक बना लिया है। ये कैसे हुआ? क्यों हुआ? और इसका हम पर क्या असर पड़ता है? क्योंकि ये कहानी सिर्फ सियासत की नहीं, हमारे आपके आस-पास की सच्चाई की है।
क्या आपने कभी सोचा है कि कोई देश अपने ही झंडे में आतंकवादियों की तस्वीरें क्यों दिखाता है? क्या ये सिर्फ एक तस्वीर है, या इसके पीछे एक गहरी, भयानक सच्चाई छिपी है? आज हम एक ऐसे सच का सामना करेंगे जिसे सुनकर शायद आप हिल जाएंगे। पाकिस्तान… एक ऐसा मुल्क जिसने आतंकवाद को अपनी राष्ट्रीय नीति बना लिया है। और इसका सबसे बड़ा सबूत दिखता है उनके झंडे में!
सोचिए, एक देश के झंडे में जब आतंकवादियों की तस्वीरें दिखाई पड़ने लगें… जब अबू सैफुल्लाह जैसे आतंकी, लश्कर-ए-तैयबा के खूंखार दरिंदे, जैश के आतंकवादी जिनके हाथ हमारे जवानों और बेगुनाह नागरिकों के खून से रंगे हैं, उन्हें सम्मान दिया जाए… तो क्या वो वाकई एक देश रह जाता है? नहीं दोस्तों! वो आतंक का अड्डा बन जाता है। एक ऐसा अड्डा जहाँ दहशतगर्दी को पाला-पोसा जाता है।
ये वही जैश के आतंकी हैं जो बालाकोट में ढेर हुए थे, वही लश्कर के जहरीले सांप है और पाकिस्तान क्या करता है? बीते कुछ दिनों में हमने देखा है कि किस तरह इन आतंकवादियों को “शहीद” का दर्जा दिया जाता है। हाँ, आपने सही सुना! उन्हें शहीद कहा जाता है! उनके ताबूतों पर पाकिस्तान का झंडा लपेटा जाता है… वही झंडा जिसमें चाँद है! और सिर्फ यहीं नहीं रुकते ये लोग, उनके परिवारों को मुआवजा भी दिया जाता है!
ये कोई छुपा हुआ खेल नहीं है, मेरे दोस्तों। पाकिस्तान उस मुकाम पर आ गया है जहाँ उसे कोई शर्म नहीं। “नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या?” ! उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता दुनिया क्या सोचेगी, क्योंकि आतंक को उन्होंने अपनी नेशनल पॉलिसी बना लिया है।
अब आप खुद सोचिए, क्या कोई भी सभ्य देश… कोई भी ऐसा मुल्क जिसकी थोड़ी भी नैतिकता बची हो… क्या वो अपने झंडे में आतंकवादियों को लपेटेगा?
ये वही झंडा है जो किसी देश की पहचान होता है, उसका गौरव होता है, उसके बलिदानों का प्रतीक होता है। और उस झंडे में आप उन लोगों को लपेट रहे हैं जिन्होंने बेगुनाहों का खून बहाया, जिन्होंने स्कूल उड़ाए, जिन्होंने हमारे जवानों को शहीद किया!
ये दिखाता है कि उस देश का नैतिक पतन हो चुका है। उसकी आत्मा मर चुकी है। जब कोई मुल्क अच्छाई और बुराई का फर्क करना छोड़ दे, जब वो अपने ही दुश्मनों को अपना हीरो मानने लगे, तो समझ लीजिए कि वो पतन की आखिरी सीढ़ी पर खड़ा है।
इसीलिए, शायद, पाकिस्तान की सेना और आतंकवादियों में फर्क समझना मुश्किल हो जाता है।
फर्क है तो बस वर्दी का। पाकिस्तान में दोनों को शहीद का दर्जा मिलता है। मरने के बाद दोनों को झंडे में लपेटा जाता है। दोनों के परिवारों को मुआवजा मिलता है!
ये है पाकिस्तान की कड़वी सच्चाई! जिस देश में स्कूल उड़ाने वालों पर झंडा लहराया जाए…
वो इस्लाम की जमीन नहीं हो सकती! वो जमीन इंसानियत के शमशान की जमीन है! ये बात दिल चीर देने वाली है।
पाकिस्तान आतंक की मां बन चुका है, ये आरोप नहीं, ये सच्चाई है।
उसामा बिन लादेन जैसा खूंखार आतंकी उनके देश में मिला, छुपा हुआ था। मसूद अजहर को उन्होंने पाला-पोसा। सैफुल्लाह जैसे दरिंदों को राष्ट्रीय सम्मान दिया।
और ये मुल्क दुनिया के सामने सबसे घिनौना ढोंग करता है। ढोंग ये कि हम तो आतंक के पीड़ित हैं!
क्या आपको विश्वास होता है ये सुनकर? जब वो खुद आतंक को पाल रहे हैं, उन्हें सम्मान दे रहे हैं, उन्हें झंडे में लपेट रहे हैं?
अब पाकिस्तान से हमें कोई शिकायत नहीं है। उनसे उम्मीद ही क्या करें? शिकायत तो दुनिया से है! सवाल ये है कि दुनिया को ये कब दिखाई पड़ेगा?
कितने और खूनी जनाजे चाहिए दुनिया को ये मानने के लिए कि ये एक आतंकवादी मुल्क है?
ये सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है, मेरे दोस्तों। क्योंकि बात सिर्फ किसी आतंकी की नहीं है, बात उस सोच की है जिसे एक पूरा देश अपना रहा है।
सोचिए, ये सैफुल्लाह खालिद जिसे पाकिस्तान ने अपने झंडे में लपेटा… जानते हैं वो कौन था?
वो लश्कर-ए-तैयबा का वो जहरीला सांप था जिसने हिंदुस्तान में आतंक का जाल बिछाया था!
और पाकिस्तान के लिए शहीद होने का मतलब क्या है, पता है? मतलब बस इतना है कि तुम हिंदुस्तान में बम फोड़ दो, तुम शहीद हो!
कई नाम थे हिंदुस्तान में इस आतंकी के… रजाउल्लाह, निजमानी, विनोद कुमार, मोहम्मद सलीम… ये सब सैफुल्लाह खालिद के ही नाम थे!
ये वही आतंकी था जो आईएसआई और हाफिज सईद का चहेता था।
इसने नेपाल में अपना अड्डा बनाया और वहीं से लश्कर के आतंकियों को तैयार कर रहा था, हथियारों की तस्करी कर रहा था। और इसने हिंदुस्तान में तीन खूनी हमले किए!
2005 में बेंगलुरु के आईआईएससी पर हमला किया था… हमारे भारतीय विज्ञान संस्थान पर। वहाँ एक प्रोफेसर की मौत हुई थी, और चार और लोग मारे गए थे।
और ऐसे आतंकी को… ऐसे कातिल को… पाकिस्तान अपने झंडे में लपेटकर भेज रहा है!
उनके झंडे में चाँद की औकात यही है… आतंकवादी को लपेटने की।
पाकिस्तान की बेशर्मी की पराकाष्ठा देख रहे हैं आप? उनका अंतिम संस्कार तक इस बात का सबूत है। बेशर्मी का सबूत!
और इसीलिए ये सवाल मन में आता है कि क्या मौजूदा दौर में पाकिस्तान की सेना और आतंकवादियों में कोई फर्क रह गया है?
सच कहें तो पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी संगठनों में फर्क ढूंढना वैसा ही है…
…जैसे सांप और उसके जहर में अंतर खोजना!
चाहे सैफुल्लाह हो, या फिर बालाकोट में मारे गए जैश के दरिंदे… वही झंडा, वही मुआवजा, वही शहादत!
ऐसा लगता है जैसे पाकिस्तानी फौज और आईएसआई… डिपार्टमेंट ही आतंकवादियों को ट्रेनिंग देता है और मिशन तय करता है!
कारगिल में सेना की आड़ में घुसपैठ कराना हो, या हाफिज सईद को सुरक्षा देना हो…
ये पाकिस्तान की पॉलिसी है। उनके पास दो तरह की फौजें हैं। एक वर्दी वाली, और एक बिना वर्दी वाली।
और दोनों में कोई अंतर नहीं है।
और इसीलिए शायद भारत ने जब पुलवामा या पहलगाम में हमला हुआ था, तो पाकिस्तान के फौजी ठिकानों को निशाना बनाया था।
ताकि पता लगे दुनिया को! पहले आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया और बाद में फौजी ठिकानों को, क्योंकि दोनों में कोई खास फर्क नहीं है। दोनों एक ही हैं!
सैफुल्ला का ताबूत हो या बालाकोट के आतंकी… पाकिस्तान जब झंडे में लपेटता है, शहीद कहता है, परिवारों को मुआवजा देता है…
…तो आप क्या फर्क बताओगे इन दोनों में? कोई फर्क नहीं है!
हाँ, एक को फौजी कह सकते हैं, एक को वो मुजाहिद्दीन कह देते हैं।
हाफिज सईद की रैलियां निकलती हैं, मसूद अजहर को सरकारी सुरक्षा मिलती है… इन्हीं के यहाँ ओसामा बिन लादेन मारा गया था। हकीकत ये है कि सेना और आतंकी एक ही मिशन पर हैं… हिंदुस्तान के खिलाफ!
अब सवाल ये है कि आतंकी शवों पर जो झंडा है… वो पाकिस्तान के लिए गर्व है या गंदगी का गट्ठर?
हमारे लिए तो ये देखना शर्मिंदगी है कि कोई मुल्क अपने झंडे को आतंकी पर लपेट रहा है!
लेकिन जब पाकिस्तान ऐसा कर रहा है, तो वो दुनिया को बता रहा है कि उसकी आत्मा मर चुकी है।
जब उनके अधिकारी खुद इसमें शामिल हो रहे हैं, तो वो दुनिया को बता रहे हैं कि वो आतंक को लीगलाइज कर रहे हैं!
क्योंकि ऐसा हमने दुनिया में तब देखा है जब किसी सिपाही की मौत होती है, सैनिक की मौत होती है! और ये दृश्य कहीं भी निकलता है, तब उसके लिए सम्मान आता है!
लेकिन आतंक का ऐसा सम्मान?
किसी देश का झंडा आतंकवादी को लपेट रहा है? उसे पाकिस्तान क्यों कह रहे हो? आतंकस्तान कह दो!
ये झंडा एक प्रतीक बन चुका है…
कि आतंकवाद को पाकिस्तान की स्वीकृति है!
सैफुल्लाह जैसे हत्यारे को जब झंडे में लपेटा जा रहा है, तो वो पाकिस्तान के नायक हैं! क्योंकि नायकों को ही लपेटा जाता है झंडे में!
हिंदुस्तान में आपने क्या किसी आम आदमी को देखा है झंडे में लपेटे हुए? या तो कोई फौजी होता है जिसे लपेटा जाता है…
…या फिर कोई बहुत बड़ा आदमी जिसने समाज के लिए कुछ बहुत बड़ा काम किया हो। उसे तिरंगे में लपेटते हैं !
इनके यहां उनको लपेटा जाता है जो कहते हैं कि हमने हिंदुस्तान में तीन बम फोड़े थे! हमने चार घुसपैठ की थी! हमने करगिल में दो मुजाहिद्दीन डाले थे!
अब हिंदुस्तान ने हमको ठोक दिया, तो इनको झंडा लगवा दो!
और हैरानी की बात ये भी है कि सैफुल्लाह के जनाजे में भी सवाल उठा कि क्या लश्कर और आईएसआई के लोग थे?
ये सवाल बड़ा इम्पोर्टेंट है ! हालांकि आईएसआई के बिना तो यहां कुछ होता ही नहीं है।
इसी में एक चाचा हमारे इंडियन पूछ रहे थे कि भैया, क्या पूरा पाकिस्तान ही आतंकवादी है?
नहीं, पूरा पाकिस्तान तो नहीं। लेकिन पाकिस्तान की सेना, सरकार और उसकी नीतियां… आतंक की जरूर हैं!
हम पाकिस्तान के आम लोगों को दोष नहीं देंगे। लेकिन ये भी सवाल जरूर पूछेंगे…
कि जब मस्जिदों से आतंकवादियों के लिए दुआएं मांगी जाती हैं, रैलियों में हाफिज सईद को गाज़ी कहकर नारे लगाए जाते हैं…
…तब वहां के लोग जो खामोश हैं, वो भी अब आवाज़ उठाएं।
मतलब, उनके लोगों को भी ये सवाल पूछना चाहिए कि यार…
…तुम्हारे मुल्क में ओसामा बिन लादेन मिला! और वहीं वो रह रहा था, मजे से रह रहा था!
और ओसामा बिन लादेन की जो वेब सीरीज बनी है, उसमें दिखाया गया है कि ओसामा ही नहीं, उसके अलावा भी जितने उसके चंगू, मंगू, पंगू, टंगू, थे… वो सब वहीं थे! अमेरिका ने एक-एक को वहीं जाकर ठोका!
वो सब पहले अफगानिस्तान में थे, जब वहां अमेरिका ने ठोका, तो भाग के छिप के पाकिस्तान आ गए! और बिना पाकिस्तान की फौज के सपोर्ट के सरहद में घुसना पॉसिबल नहीं था!
तो संरक्षण तो सबको दिया गया है! और ये कोई संयोग नहीं है, ये क्लियर है… पाकिस्तान की सुनियोजित आतंक नीति का सबूत!
कई बार पाकिस्तानी नागरिक आतंकवाद को लेकर कहते हैं इंडिया से कि यार आप लोग बहुत ब्लेम करते हो! लेकिन कैसे न ब्लेम करें यार?
तुम्हारे यहां आतंकवादी को झंडे में लपेटा जा रहा है यार!
और ये पहली बार नहीं है! मसूद अजहर को तुमने 14 करोड़ रुपये दे दिया यार!
आतंकियों को शहीद कह रहे हो! भारत में जो हमला करवाता है उसकी रैली में हजारों लोग जाकर भीड़ में गाज़ी गाज़ी गाज़ी करते हो!
अरे, अपने झंडे की ना सही यार, किसी भी मुल्क के झंडे की एक इज्जत होती है! आतंक का प्रतीक बना दिया है उसे!
और जनता चुप है! फिर कहते हो हिंदुस्तान कर रहा है!
हालांकि पाकिस्तान से कोई उम्मीद नहीं है हमको, लेकिन दुनिया से सवाल है!
कि जब पाकिस्तान का आतंकवादी चेहरा बार-बार बेनकाब हुआ है, तो दुनिया क्यों चुप है?
क्या सबूत चाहिए दुनिया को? ओसामा बिन लादेन की एबटाबाद में मौजूदगी? सैफुल्लाह के जनाजे पर झंडा? मसूद अजहर को पहले करोड़ों की फंडिंग, उसके लिए मस्जिद बनवाना…
फिर जब उसका परिवार और उसके आतंकवादी एक्सपोज हुए, तब 14 करोड़ रुपये देना?
हाफिज सईद को पालना-पोसना? पाकिस्तान क्या चाहता है?
और दुनिया कब तक इसे स्ट्रैटेजिक अलायंस का नाम देगी? कुछ करने जाओ तो चीन मसूद अजहर को बचा लेता है, यूएनएससी में निंदा प्रस्ताव आता है…
लेकिन हकीकत ये है कि पाकिस्तान एक न्यूक्लियर सशस्त्र आतंकवादी संगठन है! जो अपने नागरिकों को जिहादी बनाता है और शवों को राष्ट्रीय गौरव!
उनके विदेश मंत्री का बयान आपको याद होगा… कि पहली लाइन के फौजी खत्म हो गए, तो फिर बच्चे जो हैं, उन्हें आतंकवादी बनाएंगे, जिहाद करवाएंगे! मदरसों से बच्चे लाएंगे!
यार, ये पूरी साइकिल है! दो फ्रंट पर! एक फौजी वाली फ्रंट, दूसरी मदरसे से बच्चा पिक करो, उसका ब्रेन वॉश करो, उसे आतंकवादी बनाओ… फिर वो भारत से लड़ेगा, फिर भारत उसे ठोकेगा, जब वो मर जाएगा, तो झंडे में लपेटा जाएगा… बड़े वाले आतंकवादी को! उसके बाद उनके घर वालों को पैसा दे दिया जाएगा! कुछ को हिंदुस्तान भेजा जाएगा, कसाब को जैसे भेजे थे ये लोग! और दुनिया इसको देख के एक्सेप्ट करती है!
बस अब जब पाकिस्तान ने खुलकर ये दिखा दिया है कि शवों को झंडे में लपेटा जा रहा है…
…तो फिर दुनिया को क्या चाहिए?
मतलब इसके बाद दुनिया क्या मांगती है? क्योंकि सबूतों की कोई कमी नहीं है! कमी इच्छा शक्ति की है!
भारत इसे उजागर कर रहा है, पाकिस्तान बेशर्मी से एक्सेप्ट कर रहा है!
उनके यहां क्या फर्क पड़ता है? रक्षा मंत्री ने जाकर कह दिया वहां सीएनएन पे, सोशल मीडिया सबूत… कुछ भी कह दे रहे हैं! क्या फर्क पड़ता है उन्हें? कुछ फर्क पड़ रहा है?
फिर मैं कह रहा हूं… जिस देश में स्कूल उड़ाने वालों को झंडा उड़ाया जाए…
…वो इस्लाम की नहीं, इंसानियत के शमशान की जमीन है!
पाकिस्तान अब सिर्फ एक पड़ोसी नहीं, एक स्थायी खतरा है।
भारत को संयम नहीं, सतर्क रहकर सर्जिकल पॉलिसी अपनानी पड़ेगी!
हर मंच पर, हर फोरम पर पाकिस्तान के इस आतंकी स्टेट फिनेल को दुनिया के सामने लाना पड़ेगा!
जब तक झंडा आतंकवादियों पर लहराता रहेगा, तब तक ये जंग शब्दों से नहीं, निर्णायक तरीके से लड़ी जाएगी! और भारत को इसका नेतृत्व करना पड़ेगा!
और पाकिस्तानियों… तुम भी यार थोड़ा आवाज़ उठाओ!
हमारे लिए नहीं… अपने झंडे के लिए यार!
ये झंडे का अपमान है जो वो कर रहे हैं!
पाकिस्तान आतंकवाद को अपनी पहचान बना रहा है। आतंकियों को शहीद का दर्जा देना और उन्हें राष्ट्रीय ध्वज में लपेटना उसकी इसी नीति का हिस्सा है। यह न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी भी।
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