तुर्की क्यों दे रहा है पाकिस्तान का साथ? | एर्दोगान का छुपा हुआ अजेंडा | भारत को खतरा?

एक ऐसा रिश्ता जो हम भारतीयों को अक्सर चौंका देता है। सोचिए, एक तरफ है तुर्की, जो मिडिल ईस्ट और यूरोप के बॉर्डर पर है। और दूसरी तरफ है पाकिस्तान, जो एशिया में भारत का पड़ोसी है। इन दोनों देशों के बीच हजारों किलोमीटर की दूरी है। इनका इतिहास अलग है, इनकी संस्कृति में भी जमीन-आसमान का फर्क है, और सच कहूं तो इनके बीच कोई खास व्यापार भी नहीं है। फिर भी, तुर्की, खासकर उसके राष्ट्रपति रजब तैयब इरदुगान, पाकिस्तान का खुलकर साथ देते हैं। कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़े होते हैं, भारत के खिलाफ बयान देते हैं।

ये बात भारत के आम आदमी को भी बहुत ज्यादा अखर रही है कि तुर्की पाकिस्तान का साथ दे क्यों रहा है? क्योंकि दोनों देश ऐसा तो है नहीं कि पड़ोसी हैं। हजारों किलोमीटर का फासला है दोनों के बीच में। लिटरली तुर्की से पाकिस्तान जाने के लिए दो समुद्र पार करने पड़ते हैं।

पहली नजर में देखने पर तो ये रिश्ता बिल्कुल बेतुका लगता है। ऐसा लगता है जैसे कोई दूर का रिश्तेदार अचानक से आपके दुश्मन का बेस्ट फ्रेंड बन जाए! आखिर इसके पीछे वजह क्या है? क्या ये सिर्फ दोस्ती है? या फिर कुछ और गहरा राज छुपा है?

आज हम इसी राज से पर्दा उठाने वाले हैं। हम आपको बताएंगे वो तीन बड़ी और चौंकाने वाली वजहें, जिनके कारण तुर्की पाकिस्तान के साथ खड़ा है। और यकीन मानिए, ये वजहें जानकर आपको भी हैरानी होगी। ये सिर्फ इमोशनल सपोर्ट नहीं है, इसके पीछे बहुत कुछ कैलकुलेटेड है। क्योंकि ये कहानी सीधी नहीं है, इसमें कई परतें हैं।

चलिए, बात करते हैं पहली और शायद सबसे सीधी वजह की। हर रिश्ते के पीछे अक्सर कोई न कोई फायदा छुपा होता है, और तुर्की-पाकिस्तान के रिश्ते में ये फायदा सीधा पैसों से जुड़ा है। लेकिन ये सिर्फ व्यापार नहीं है, ये है हथियारों का व्यापार – डिफेंस एक्सपोर्ट का खेल।

तुर्की की डिफेंस इंडस्ट्री पिछले कुछ सालों में बहुत तेजी से ऊपर आई है। उन्होंने खासकर ड्रोन टेक्नोलॉजी और छोटे युद्धपोतों में कमाल किया है। आपने शायद तुर्की के बायरकतार टीबी2 ड्रोन का नाम सुना होगा। ये ड्रोन जंग के मैदान में बहुत असरदार साबित हुए हैं और इनकी डिमांड पूरी दुनिया में है। तुर्की अब इन हथियारों को बेचकर मोटा पैसा कमाना चाहता है।

असल में, तुर्की के डिफेंस एक्सपोर्ट में जबरदस्त उछाल आया है। पिछले साल तुर्की का डिफेंस एक्सपोर्ट करीब 7 बिलियन डॉलर का था। सोचिए, 7 बिलियन डॉलर! अगर हम इसकी तुलना भारत से करें, तो भारत का टारगेट है कि अगले दो-ढाई साल में हम 5 अरब डॉलर के हथियार हर साल बेचा करें। यानी, तुर्की हमसे कहीं आगे निकल चुका है इस रेस में।

अब सवाल ये है कि तुर्की ये हथियार बेचता किसे है? और यहीं पर एंट्री होती है पाकिस्तान की।

पाकिस्तान को अच्छे हथियार चाहिए। क्यों चाहिए? जाहिर है, अपने पड़ोसियों से मुकाबले के लिए। खासकर भारत से। लेकिन पाकिस्तान के साथ एक बड़ी दिक्कत है। उसे अमेरिका और यूरोप से हथियार खरीदना बहुत मुश्किल हो जाता है। कई तरह की पाबंदियां हैं, कई शर्तों पर हथियार मिलते हैं, और कई बार तो मिलते ही नहीं हैं। इसका एक बड़ा कारण पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड है, आतंकवाद को समर्थन देना और बाकी जियोपॉलिटिकल मुद्दे।

तो, जब अमेरिका और यूरोप से रास्ते बंद हो जाते हैं, तो पाकिस्तान किसकी तरफ देखता है? चीन की तरफ। चीन पाकिस्तान का ‘सदाबहार दोस्त’ है और उसे हथियार देता भी है। चीन उसे हथियार देता है सस्ते, बेहतर और लोन देकर भी। । लेकिन चीन के हथियारों के साथ एक बड़ी समस्या है – उनकी क्वालिटी। हमने देखा है कि चीन के कई हथियार सिस्टम युद्ध के मैदान में खरे नहीं उतरते। पाकिस्तान खुद इस बात से परेशान है। उनके पास जो चीनी हथियार हैं, उनकी क्वालिटी इतनी घटिया और इतनी रद्दी क्वालिटी के हैं कि पाकिस्तान के लोग ही गाली दे रहे हैं।

ऐसे में पाकिस्तान को चाहिए कुछ क्वालिटी वेपन्स जिससे कि वो भारत के सामने खड़ा भी हो पाए युद्ध में। उसे ऐसे हथियार चाहिए जो मॉडर्न हों, जिनमें अच्छी टेक्नोलॉजी हो, और जो जंग में काम आ सकें। और यहीं पर तुर्की एक शानदार मौका देखता है।

तुर्की नाटो (NATO) का सदस्य है। नाटो एक मिलिट्री अलायंस है जिसमें अमेरिका और यूरोप के ताकतवर देश शामिल हैं। नाटो का सदस्य होने के नाते, तुर्की को यूरोप और अमेरिका से अच्छी टेक्नोलॉजी का एक्सेस मिलता है। तुर्की इसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके अपने खुद के मॉडर्न हथियार बना रहा है – ड्रोन, मिसाइलें, युद्धपोत।

अब तुर्की के पास ये अच्छी टेक्नोलॉजी वाले हथियार हैं, और पाकिस्तान को ऐसे ही हथियारों की सख्त जरूरत है, लेकिन वो दूसरों से खरीद नहीं सकता।

पाकिस्तान, तुर्की के लिए एक रेडीमेड और बड़ा मार्केट है। तुर्की पाकिस्तान को वो हथियार बेच सकता है जो कोई और नहीं बेच रहा। इसमें तुर्की का सीधा और बहुत बड़ा आर्थिक फायदा है। पाकिस्तान तुर्की से युद्धापोत खरीद रहा है, ड्रोन खरीद रहा है, और खबर है कि आने वाले समय में मिसाइलें भी खरीदेगा ।

और मजेदार बात ये है कि तुर्की ये हथियार ऊंचे दामों पर बेचता है। वो पाकिस्तान की मजबूरी का फायदा उठाता है। पाकिस्तान अपनी जरूरत के लिए, या ये कहिए कि भारत से मुकाबले की अपनी धुन में, तुर्की को मुंह मांगी कीमत देता है। भले ही पाकिस्तान उसके लिए अपनी जनता का खून चूसे, लोन उठाए ।
लेकिन तुर्की दुगने-तिगने दाम में हथियार बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहा है।

तो, तुर्की के लिए पाकिस्तान का साथ देना सिर्फ दोस्ती नहीं है, ये एक बहुत ही चालाक बिजनेस डील है। पाकिस्तान को जो हथियार कहीं और से नहीं मिल रहे, वो तुर्की से मिल रहे हैं, और तुर्की इन हथियारों को बेचकर अपनी डिफेंस इंडस्ट्री को मजबूत कर रहा है और पैसे कमा रहा है। यह दोनों का फायदा है। पाकिस्तान को क्वालिटी वेपन मिलते हैं और तुर्की को मिलती है मोटी रकम वो भी मुंह मांगी।

लेकिन कहानी सिर्फ पैसों तक सीमित नहीं है। इसके पीछे और भी बड़े और खतरनाक राज छुपे हैं। चलिए, अब बात करते हैं दूसरी बड़ी वजह की।

दोस्तों, पैसों का फायदा तो है, लेकिन उससे भी बड़ा फायदा है तुर्की का एक बहुत बड़ा सपना – एक ऐसा सपना जो पूरे रीजन की शांति को खतरे में डाल सकता है। ये सपना है तुर्की का एक न्यूक्लियर पावर बनने का।

जी हाँ, आपने सही सुना। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान का एक बहुत बड़ा और महत्वाकांक्षी लक्ष्य है कि किसी दिन तुर्की भी परमाणु शक्ति बने। ये बात उन्होंने कई बार इशारों-इशारों में कही है, और कई बार तो खुलकर भी।

एर्दोगान अपने पूरे शासन काल में ये बात उठाते रहे हैं कि या तो दुनिया के सभी देश न्यूक्लियर हथियार त्यागें या फिर हमें भी न्यूक्लियर हथियार दें। उनकी दलील ये है कि तुर्की की लोकेशन बहुत रणनीतिक है। यह यूरोप और एशिया के चौराहे पर है। यहां से यूरोप और एशिया दोनों को एक साथ साधा जा सकता है। । इसके अलावा, तुर्की के आसपास काफी कॉन्फ्लिक्ट (conflict) भी होते हैं। जैसे कि इजराइल का कॉन्फ्लिक्ट (conflict) और इजराइल से खतरा भी है तुर्की को कि कहीं इजराइल डायरेक्ट अटैक ना कर दे उस पर। इसलिए, अपनी सुरक्षा के लिए और इस महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थिति का फायदा उठाने के लिए, तुर्की को लगता है कि उसे परमाणु हथियार चाहिए।

लेकिन परमाणु हथियार बनाना या किसी से हासिल करना आसान नहीं है। दुनिया के ज्यादातर देश न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी शेयर करने को तैयार नहीं हैं। अमेरिका, यूरोप के देश, कोई भी उसे न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी देने को तैयार नहीं है। यहां तक कि चीन भी नहीं। । जो देश पहले से परमाणु शक्ति हैं, वो नहीं चाहते कि कोई नया देश इस लिस्ट में शामिल हो, खासकर तुर्की जैसा देश ।

तो फिर तुर्की को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी कहां से मिल सकती है?

और यहीं पर फिर से एंट्री होती है पाकिस्तान की। जी हाँ, दोस्तों, पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति है। और तुर्की को उम्मीद है कि शायद पाकिस्तान उसकी मदद कर दे।

ये सिर्फ अटकलें नहीं हैं। 2021 में ऐसी खबरें भी आई थीं कि तुर्की न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी चाहता है पाकिस्तान से और पाकिस्तान उसकी मदद करने को भी तैयार है। सोचिए, ये कितनी खतरनाक बात है! पाकिस्तान, जो खुद आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहा है और जिस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय अक्सर सवाल उठाता रहता है, वो तुर्की को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी देने की सोच सकता है?

तुर्की के लिए, पाकिस्तान का साथ देना इस बहुत बड़े सपने को पूरा करने का एक जरिया है। पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते रखकर, उसकी मदद करके, तुर्की उम्मीद करता है कि बदले में पाकिस्तान उसे वो टेक्नोलॉजी दे दे जो कोई और नहीं देगा।

ये बात समझना बहुत जरूरी है कि तुर्की और पाकिस्तान की दोस्ती सिर्फ हथियारों की खरीद से कहीं ज्यादा है। इसके पीछे एर्दोगान का एक बहुत बड़ा भू-राजनीतिक खेल है, जिसका सीधा संबंध परमाणु हथियारों से है। तुर्की का न्यूक्लियर पावर बनने का सपना इस रिश्ते की सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति हो सकता है।

यही सबसे बड़ा आधार है इन दोनों देशों की दोस्ती का। ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। ये वो नींव है जिस पर ये पूरा रिश्ता टिका हुआ है। तुर्की पाकिस्तान को इसलिए सपोर्ट कर रहा है क्योंकि उसे पाकिस्तान से एक ऐसी चीज चाहिए जो दुनिया का कोई और देश उसे नहीं देगा – परमाणु टेक्नोलॉजी।

अब आप पूछेंगे कि पाकिस्तान क्यों ऐसा करेगा? पाकिस्तान भी तो कोई बेवकूफ नहीं है। पाकिस्तान भी ऐसा इसलिए कर सकता है क्योंकि उसे तुर्की से क्वालिटी हथियार चाहिए, जिसे वो भारत से मुकाबले में इस्तेमाल कर सके। और शायद पाकिस्तान को लगता है कि तुर्की को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी देने से उनका रिश्ता और मजबूत होगा और तुर्की हमेशा उनके साथ खड़ा रहेगा, खासकर भारत के खिलाफ।

ये एक खतरनाक तालमेल है। एक तरफ तुर्की का न्यूक्लियर सपना और दूसरी तरफ पाकिस्तान की हथियारों की जरूरत। ये दोनों मिलकर एक ऐसा रिश्ता बना रहे हैं जो सिर्फ दोनों देशों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे साउथ एशिया और मिडिल ईस्ट रीजन के लिए चिंता का विषय है।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इस रिश्ते का एक तीसरा और बहुत ही दिलचस्प पहलू भी है, जो एर्दोगान की अपनी पर्सनैलिटी और महत्वाकांक्षा से जुड़ा है।

ठीक है दोस्तों, हमने बात की पैसों की, हमने बात की परमाणु सपनों की। लेकिन इस रिश्ते का एक और पहलू है जो शायद सबसे ज्यादा दिलचस्प और एर्दोगान के व्यक्तित्व से जुड़ा है। ये है उनका एक और बड़ा और महत्वाकांक्षी ख्वाब – दुनिया भर के मुसलमानों का ‘खलीफा’ बनने का ख्वाब।

खलीफा का मतलब होता है इस्लामिक दुनिया का सर्वोच्च नेता, जिसका मुस्लिम समुदाय पर राजनीतिक अधिकार हो। इतिहास में खलीफाओं का एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। उस्मानिया सल्तनत (Ottoman Empire) के सुल्तान भी खलीफा कहलाते थे। एर्दोगान शायद उसी गौरवशाली इतिहास को फिर से जिंदा करना चाहते हैं।

एर्दोगान चाहते हैं कि दुनिया भर के मुसलमान उन्हें अपना खलीफा मानें। यानी कि उसे अपना सबसे बड़ा नेता मानें । वो खुद को मुस्लिम दुनिया के लीडर के तौर पर पेश करते हैं। आपने देखा होगा कि वो इस्लामिक देशों के मुद्दों पर बहुत मुखर रहते हैं, चाहे वो कश्मीर हो, या फिलिस्तीन, या कोई और। वो खुद को मुसलमानों के अधिकारों का रक्षक दिखाते हैं।

लेकिन ये रास्ता इतना आसान नहीं है। मुस्लिम दुनिया में पहले से ही कुछ देश हैं जिनका मुसलमानों पर काफी प्रभाव है। इनमें सबसे प्रमुख है सऊदी अरब। मक्का और मदीना जैसे पवित्र स्थल सऊदी अरब में हैं, जिसकी वजह से मुस्लिम देशों का ज्यादा भरोसा करते हैं सऊदी अरेबिया पर। । सऊदी अरब और उसके साथ के देश जैसे यूएई, कुवैत, कतर, पारंपरिक रूप से इस्लामिक दुनिया के लीडर माने जाते हैं।

एर्दोगान जानते हैं कि जब तक सऊदी अरब और ये दूसरे देश प्रभावशाली रहेंगे, तब तक उन्हें कोई खलीफा नहीं मानेगा। इसीलिए वो लगातार सऊदी अरब और उसके शाही परिवार को टारगेट भी करता आया है।

इसका एक बड़ा उदाहरण है जमाल खशोग्जी का मामला। जमाल खशोग्जी सऊदी अरब के एक पत्रकार थे जिनकी तुर्की में हत्या कर दी गई थी। ये मामला इतना बड़ा नहीं था जिस पत्रकार को सऊदी अरब ने मरवाया । लेकिन तुर्की ने इस मामले को खूब उछाला, उसे बड़ा किसने बनाया? जवाब है तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने। लेकिन आखिर क्यों? ताकि सऊदी अरब की बदनामी हो , दुनिया भर के मुस्लिमों का भरोसा सऊदी अरब पर से घटे और एर्दोगान को वो अपना रक्षक मानें, उसे सर्वोच्च नेता मानें और उसके कहे पर चलें।

एर्दोगान की इस खलीफा बनने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है सऊदी अरेबिया और उसके साथ के देश। इसीलिए वो उनका विरोध करते हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि इसका पाकिस्तान से क्या लेना-देना?

पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है, और काफी आबादी वाला मुस्लिम देश है। एर्दोगान को लगता है कि पाकिस्तान को साथ लेकर वो मुस्लिम दुनिया में अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं। पाकिस्तान को सपोर्ट करके, खासकर भारत जैसे ‘गैर-मुस्लिम’ देश के खिलाफ, वो दुनिया भर के मुसलमानों को ये संदेश देना चाहते हैं कि ‘देखो, मैं तुम्हारे साथ खड़ा हूँ’।

इसीलिए आप देखोगे कि सिर्फ भारत और पाकिस्तान ही नहीं, हर एक वो लड़ाई जहां पर एक मुस्लिम राष्ट्र है एक नॉन-मुस्लिम राष्ट्र है, वहां पर एर्दोगान बिन बुलाए मेहमान की तरह आता है और वो एक मुस्लिम राष्ट्र का सपोर्ट करके ये दिखाता है कि ये लड़ाई दो देशों की नहीं, दो धर्मों की है। अर्मेनिया-अज़रबैजान का युद्ध इसका प्राइम एग्जांपल है। अज़रबैजान एक मुस्लिम देश है और एर्दोगान ने खुलकर अज़रबैजान का साथ दिया।

तो, पाकिस्तान का साथ देना एर्दोगान के ‘खलीफा’ बनने के बड़े प्लान का हिस्सा है। वो पाकिस्तान को मोहरे की तरह इस्तेमाल करते हैं मुस्लिम दुनिया में अपनी पैठ बनाने के लिए और सऊदी अरब जैसे प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर करने के लिए। वो पाकिस्तान की भारत के साथ दुश्मनी का फायदा उठाते हैं खुद को मुस्लिम दुनिया के हीरो के तौर पर पेश करने के लिए।

दोस्तों, ये रिश्ता जितना दिखता है, उससे कहीं ज्यादा जटिल है। ये सिर्फ दो देशों की दोस्ती नहीं है, बल्कि गहरे स्वार्थ, महत्वाकांक्षा और भू-राजनीतिक खेल का नतीजा है।

तो दोस्तों, संक्षेप में कहें तो, तुर्की पाकिस्तान का साथ अपने फायदे के लिए दे रहा है। डिफेंस एक्सपोर्ट से मुनाफा, न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी की लालसा, और एर्दोगान का मुस्लिम दुनिया का नेता बनने का सपना – यही इस रिश्ते की असली बुनियाद हैं। ये एक ऐसा खेल है जो हम भारतीयों के लिए भी चिंता का विषय है।

तुर्की और पाकिस्तान के इस रिश्ते पर आपके क्या विचार हैं? हमें कमेंट्स में लिखकर जरूर बताएं। इस वीडियो को लाइक करें और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें ताकि ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी आप तक पहुंचती रहे।

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